
भोपाल (नप्र)। 70 साल के एक वृद्घ वेंटीलेटर पर हैं। क्रॉनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (सीओपीडी) की वजह से उन्हें सांस लेने में में तकलीफ हो रही है। उनके इलाज के लगभग सभी रास्ते बंद हो चुके थे। लेकिन, इलाज की अत्याधुनिक तकनीक (स्टेम सेल थैरेपी) से अब फिर ठीक हो सकेंगे। स्वस्थ्य व्यक्ति की तरह उनकी सांसें चलेंगी। यह दावा है स्टेम सेल थैरेपी से इलाज करने वाले दिल्ली के डॉ. विक्रम पबरेजा का। उन्होंने इस मरीज में सोमवार को स्टेम सेल थैरेपी शुरू की है।
मरीज एक निजी अस्पताल में भर्ती है। राजधानी में स्टेम सेल थैरेपी का यह पहला मामला है। डॉ. पबरेजा ने बताया कि इस मरीज का इलाज चार चरणों में होगा। इसमें करीब दो लाख रुपए का खर्च है। पहले चरण में मरीज की स्टेम सेल निकालकर प्रभावित हिस्से में पहुंचाई जाती है। दूसरे चरण में उस हिस्से में स्टेम सेल की संख्या बढ़ाई जाती है। अगले चरण में उसी मरीज की स्टेम सेल लेकर लैब में उनकी संख्या में बढ़ाई जाती है। इसके बाद उन्हें प्रभावित हिस्से में पहुंचा दिया जाता है। सबसे आखिर में फिजियोथैरपी की जाती है। इससे के बाद मरीज पूरी तरह दुरुस्त हो जाता है।
स्टेम सेल थैरेपी के लिए भोपाल आए एडवांससेल कंपनी के सीईओ विपिन जैन ने बताया कि स्टेम सेल थैरेपी से 37 तरह की बीमारियों का इलाज किया जा सकता है। इसमें डायबिटीज, कैंसर, आटिज्म, एएलएस, कार्डियक, आस्टियोपोरोसिस, न्यूरोलाजिकल बीमारी, स्पाइन कार्ड, बोनमैरो, हड्डी जोड़ आदि शामिल हैं। उन्होंने बताया कि पहले स्टेम सेल थैरेपी के लिए उसी व्यक्ति के जन्म के समय गर्भनाल में मौजूद स्टेम सेल को संग्रहित कर उसका उपयोग किया जाता था। लेकिन, नई तकनीक में किसी भी उम्र में शरीर के बोनमैरो या अन्य हिस्से से सेल निकालकर उसका उपयोग स्टेम सेल थेरेपी के लिए किया जा सकता है।
डेंगू का इलाज भी आसान
डॉ. पबरेजा ने बताया कि डेंगू के बाद जिन मरीजों का प्लेटलेट काउंट 20 हजार से भी नीचे पहुंच जाता है, उनका भी स्टेम सेल थैरेपी से इलाज किया जाता है। इससे मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाता है। इसमें करीब 50 हजार रुपए का खर्च है। उन्होंने अभी तक 800 डेंगू मरीजों को इस तकनीक से ठीक करने का दावा किया।
क्या हैं स्टेम सेल
यह एक तरह की कोशिकाएं हैं, जो स्पाइनल कार्ड के अलावा शरीर के अन्य हिस्से में होती हैं। अन्य कोशिकाएं भी स्टेम सेल से बनती हैं। स्टेम सेल थैरेपी में प्रभावित कोशिकाओं को हटाकर स्टेम सेल की मदद से नई कोशिकाएं विकसित की जाती है।